वो दौर भी देखे हैं, तारीख की आंखों ने लम्हों ने खता की थी सदियों ने सजा पाई

वो दौर भी देखे हैं, तारीख की आंखों ने


लम्हों ने खता की थी सदियों ने सजा पाई



हमारे अति उत्साही और जल्दबाज प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की एक जरा-सी-चूक ने पूरे देशवासियों को संकट में डाल दिया। कोरोना बीमारी के नाम पर प्रथम लॉकडाउन की घोषणा करने से पहले काश, हमारे प्रधानमंत्री सक्षम विशेषज्ञों से सलाह मशवरा करके एक रूपरेखा के तहत देश को बंद करने का फैसला ले लेते तो लाखों मजदूरों और आम देशवासियों को भयावह स्थितियों से दो-चार नहीं होना पड़ता। काश, हमारे अति समझदार प्रधानमंत्री अगर पूरी तैयारियों के साथ लॉकडाउन का फैसला एक हफ्ते बाद के लिए करते ताकि सरकारी मदद के माध्यम से देश के करोड़ों मजदूर और आम नागरिक अपने-अपने परिवारों के पास सकुशल पहुंच गए होते तो शायद मजदूरों के असंगठित एवं अनियोजित पलायन के कारण होने वाली सैकड़ों मौतों से शायद बचाव हो जाता। मगर हमारे आदरणीय प्रधानमंत्री जी को देशवासियों को अप्रत्यशित चौंकाने वाले निर्णयों से झटके देने की अपनी प्रवृत्ति में कुछ ज्यादा ही मजा आता है। अपनी इसी प्रवृति के चलते 880 वॉट के करेंट का झटका पहले भी नोटबंदी का एलान करते हुए जनता को लगाकर वाहवाही लूटने का प्रयास कर चुके हैं हालांकि उनके इस कदम ने भी देश की अर्थव्यवस्था पर और यहां तक कि आमजनता के जीवन पर गहरा आघात पहुंचाया। तब भी मोदी जी ने जनता को धमकाने के अंदाज में यह कहकर अपनी जान बचाई थी कि 'मैं तो फकीर हूं झोला उठाकर चल दूंगा' हमारे देश की भोली भाली जनता उस समय भी उनकी इस बात का सही मर्म समझने में नकाम रही थी कि अगर कहीं शासन-प्रशासन में फंसाव मससूस हुआ तो सब कुछ छोड़-छाड़कर हमारे प्रधानमत्री अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ने को तैयार थे। कोविद 19 के मामले में अगर जनवरी में ही पहला केस आने पर एहतिहायती कदम सरकार द्वारा उठा लिए गए होते और जनाब ट्रंप साहब की अगवानी के लिए आयोजित 'नमस्ते ट्रंप' के विशाल समारोह को रद्द कर दिया जाता तो देश आज इस भयानक स्थिति से नहीं गुजर रहा होता, मगर हमारे प्रधानमत्री जी पर तो जनाब ट्रंप का भूत इस तरह सवार है कि वे उनके राष्ट्रपति चुनाव को स्वयं अपना चुनाव मानते हुए एक पेशेवर चुनाव प्रचारक की भांति व्यवहार कर रहे हैं। हालांकि चीन के शी जिनपिंग को भी मोदी जी अपने साथ गुजरात में झूला-झुला चुके हैं, मगर आज शायद ट्रंप के इशारों पर वे अपने तथाकथित पुराने मित्र शी जिनपिंग से संबंधों में कड़वाहट पैदा करने से भी कोई गुरेज नहीं कर रहे हैं। लगता तो ऐसा है कि ताली-थाली बजाओ या दिया-मोमबत्ती जलाओ या करोड़ों का खर्च करते हुए आसमान से पुष्प वर्षा कराओ और फिर कोरोना के बढ़ते ग्राफ के दौरान अचानक देश को 'अनलॉक' करने का फैसला सभी कुछ अमरीका के सलाह पर किया जा रहा है। देश की अर्थव्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई तब प्रधानमंत्री जी का 20 लाख करोड़ का आर्थिक पैकेज आंखों में धूल झोंकने के समान लगता है और सब कुछ गंवा कर सन्यासी बाबाओं की तरह प्रवचन करते हुए देशवासियों को आत्मनिर्भर बनने का संदेश कहीं न कहीं यह आभास देता है, कि भैया मैंने तो पूरी कोशिश कर ली अब आप लोग ही आगे आकर स्थिति को संभालने का स्वयं प्रयास करें। इतिहास गवाह है कि अनेक अवसरों शीर्ष नेतृत्व द्वारा की गई छोटी-सी गलती का खामियाजा पूरे देश को भुगतना पड़ता है। आज के हालात में भी यह शत प्रतिशत सही लगता हैचलते-चलते कमाल तो हमारी दिल्ली के मुख्यमंत्री आदरणीय अरविंद केजरीवाल जी ने किया, जब उन्होंने लॉकडाउन के दौरान शराब की दुकानें खोलते हुए उनके मूल्यों में 70 प्रतिशत की बढ़ोतरी करके खजाना भरने का प्रयास किया जबकि कुछ माह पहले तक श्री केजरीवाल अपने हर सम्बोधन में राज्य सरकार के पास भरपूर पैसा होने की बात करते रहे हैं। और उनके उपमुख्यमंत्री श्री मनीष सिसोदिया जी आज केंद्र से पैसा मांगने की गुहार लगाते हुए कह रहे हैं कि राज्य सरकार के पास अपने कर्मचारियों की तनख्वाहें देने के लिए कोई पैसा नहीं है। समझ से बाहर है कि अगर पैसे की ऐसी ही दिक्कत थी तो केवल सत्ता हासिल करने के लिए केजरीवाल जी ने अनेक मुफ्त सुविधाएं दिल्ली के एक खास वर्ग को प्रदान करने की नौटंकी करते हुए मुफ्तखोरी की आदत क्यों डाली। मजे की बात तो यह है कि आज केजरीवाल जी कह रहे हैं कि घटिया राजनीति से परहेज किया जाना चाहिए, जबकि सर्वविदित है कि ऐसी ओछी और घटिया राजनीति करते हुए दूसरों पर बेबुनियाद, झूठे आरोप लगाते हुए और अपने को स्वच्छ एवं ईमानदार राजनेता प्रदर्शित करते हुए ही उन्होंने दिल्ली राज्य की सत्ता भोली जनता को गलतबयानी के आधार पर बरगला कर ही हासिल करी थी/ है।


 


तो ये हैं आपदा को अवसर में बदलने वाले 'महानुभाव'?



प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने एक संबोधन में कोरोना महामारी के सन्दर्भ में कहा था कि भारत ने आपदा को अवसर में बदल दिया है। प्रधानमंत्री ने कहा था कि इतनी बड़ी आपदा, भारत के लिए एक संकेत,एक संदेश और एक अवसर लेकर आई है। अपने इस कथन के सन्दर्भ में प्रधानमंत्री ने यह उदाहरण पेश किया कि -श्जब कोरोना संकट शुरू हुआ, तब भारत में एक भी पीपीई किट नहीं बनती थी। एन-95 मास्क का भारत में नाम मात्र उत्पादन होता था परन्तु आज स्थिति ये है कि भारत में ही हर रोज दो लाख पीपीई किट और दो लाख एन 95 मास्क का उत्पादन किया जा रहा है। आपदा को अवसर में बदलने के सन्दर्भ में इससे भी बड़ी संभावनाएं देखते हुए केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी सहित अनेक जिम्मेदार नेताओं व नीति निर्माताओं द्वारा कोरोना को लेकर चीन की हो रही वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय छीछालेदर को देखते हुए चीन से बड़े पैमाने पर आयात व चीनी सामानों पर निर्भरता छोड़ कर आत्म निर्भर बनने पर भी चिंतन शुरू किया जा चुका है। परन्तु जहाँ सरकार की कोशिशें आपदा को अवसर में बदलते हुए आत्म निर्भर बनने की हैं वहाँ कुछ जनविरोधीव राष्ट्रविरोधी मानसिकता रखने धनलोभी व भ्रष्ट प्रवृति के लोग शायद इस आपदा को अपने स्वयं के लिए एक श्शुभ अवसरश् में बदलने जैसा अर्थ निकालने लगे हैं। जब देश में प्रथम लॉक डाउन की घोषणा हुई उसी समय धनलोभी एवं मानवता विरोधी लुटेरों ने इस आपदा को अपने लिए अवसर समझते हुए जमाखोरी व लूट का काम शुरू कर दिया था। रातोंरात जरूरी व दैनिक उपयोगी वस्तुओं के मूल्य अचानक बढ़ गए थे। परन्तु सरकार की तत्काल कार्रवाइयों, चेतावनियों व तत्परता से इसपर काफी हद तक नियंत्रण पाया जा सका। परन्तु अपना जीवन इसी हरमखोरी की कमाई करने में गुजारने वाले भला अपनी हरकतों से कहां बाज आने वाले। इस मानसिकता के लोग तो शायद यही समझते हैं कि कोरोना आपदा होगी दूसरों के लिए उनके लिए तो यह लूट खसोट और हरमखोरी का ही अवसर है। यही वजह है कि भ्रष्टाचार की अनेक शर्मनाक घटनाएं सामने आई। पंजाब में कोरोना संक्रमण से मरीजों डॉक्टर्स व पैरा-मेडिकल स्टाफ को बचाने के लिए खरीदी गई करोड़ों रूपये की पी.पी.ई. किट्स, मास्क व अन्य मेडिकल संबंधी जरूरी सामान की खरीद में घोटाले का समाचार प्राप्त हुआ। अमृतसर के गुरु नानक देव अस्पताल में 800 रूपये में मिलने वाली घटिया किस्म की पी पी इ किट लगभग 2100 रूपये में खरीदी गई। यह भी आरोप लगे की इसी घटिया किट के चलते कई कोरोना योद्धा संक्रमित होकर अपनी जान भी गँवा चुके। कई कोरोना योद्धाओं ने इसे पहनने से इन्कार भी कर दिया। इसी प्रकार स्वास्थ्य विभाग द्वारा खरीदे गए छ–95 मास्क की जगह पर धूल साफ करने वाले मास्क खरीदे जाने का भी आरोप लगा।इसी प्रकार हिमाचल प्रदेश में हुए पीपीई किट घोटाले में मामले ने इतना तूल पकड़ा कि हिमाचल प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग के निदेशक को निलंबित किया गया तथा इस लूट खसोट में शामिल हिमाचल प्रदेश भाजपा अध्यक्ष राजीव बिंदल को भी त्याग पत्र देना पड़ा। इस लूट व रिश्वत कांड में और भी कई विभागीय गिरफ्तारियां भी हुई हैं और छापेमारी के दौरान बड़े पैमाने पर नकदी बरामदगी के भी समाचार हैं। हिमाचल प्रदेश में ही कुल्लू में सेनिटाइजर खरीद में भी घोटाले के समाचार प्राप्त हुए हैं। सबसे शर्मनाक समाचर तो प्रधानमंत्री के अपने गृह राज्य गुजरात से आया जहां ऐसा घटिया वेंटिलेटर अत्यंत मंहगी कीमत पर सरकार को सप्लाई किया गया जो वास्तव में वेंटिलेटर है ही नहीं। मुख्यमंत्री विजय रूपाणी द्वारा अहमदाबाद के सिविल अस्पताल में इस नकली वेंटिलेटर का उद्घाटन किया गया था। । लेकिन अब यह स्पष्ट हो गया है कि विजय रुपाणी के राजकोट के एक घनिष्ठ उद्योगपति मित्र द्वारा सप्लाई किया गया यह वेंटिलेटर न केवल नकली है,बल्कि इससे मरीजों की जान को खतरा भी हो सकता है। गुजरात से प्राप्त खबरों के मुताबिक जिसे वेंटिलेटर बताया जा रहा है वह दरअसल अंबु बैग है। लिहाजा मुख्य मंत्री हविजय रुपाणी द्वारा अंबु बैग को वेंटिलेटर के तौर पर सेटअप करवाने से साफ जाहिर होता है कि गुजरात सरकार मरीजों की जिंदगी से खिलवाड़ कर रही है और निश्चित रूप यह एक आपराधिक ख्नत्य है। गत 4 अप्रैल को विजय रुपाणी ने जब इस नकली वेंटिलेटर का उद्घाटन किया था उस समय उनके 'प्रवचन' के शब्द यह थे -'इस समय जब कि पूरी दुनिया कोविड 19 जैसी महामारी का सामना कर रही है और मामलों के बहुत तेजी से बढ़ने के चलते वेंटिलेटर की कमी हो रही है। ऐसे समय में सस्ते वेंटिलेटर बनाकर गुजरात इस महामारी से लड़ने वाले दुनिया के तमाम देशों की कतार में सबसे आगे खड़ा हो जाएगा। 'परन्तु इस नकली वेंटिलेटर का भंडाफोड़ होने के बाद इस मामले ने एक बार फिर पूरे गुजरात को शर्मसार कर दिया है। क्या सत्ता की आड़ में जनता के पैसों को लूटना, अपने मित्र उद्योगपतियों को फायदा पहुँचाना और लोगों की जान से खिलवाड़ करने को ही 'आपदा को अवसर' में बदलना कहते हैं ?गौर तलब है कि यह लूट उस राज्य की है जो न केवल प्रधानमंत्री का राज्य है बल्कि जो देश के दूसरे नंबर का सबसे अधिक कोरोना प्रभावित राज्य भी है। 'आपदा को अवसर' में बदलने की यह कला केवल नेताओं को ही नहीं आती बल्कि इन्हीं से प्रेरणा प्राप्त आम आदमी भी इस हुनर से भली भांति वाकिफ है। तभी पिछले दिनों दिल्ली पुलिस ने लॉकडाउन के दौरान अफीम की तस्करी करने वाले एक ऐसे गिरोह का पर्दाफाश किया है, जो झारखंड के नक्सल प्रभावित हजारीबाग इलाके से ई-पास लेकर वाहन के जरिए दिल्ली में अफीम लेकर आता था। गिरफ्तार आरोपियों के पास से पुलिस ने लगभग 12 किलोग्राम अफीम बरामद की है, जिसकी अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमत करीब दो करोड़ रुपये बताई गई है। दरअसल भ्रष्टाचारियों की वह निर्दयी दुनिया है जो प्रायः नेताओं के संरक्षण में हर 'आपदा में ही अवसर' की तलाश कर लेती है। जब यह शक्तियां कारगिल युद्ध के दौरान देश पर कुर्बान होने वाले भारत माता के लाल शहीदों के कफन व ताबूत की खरीद में घोटाला कर सकती हैं तो इनके लिए करोना महामारी की आड़ में पी पी ई किट, टेस्टिंग किट, मास्क या एन-95 मास्क या अन्य मेडिकल संबंधी दवाइयों व दूसरी सामग्रियों में लूट खसोट व घोटाला किया जाना कोई आश्चर्य वाली बात नहीं है। अभी देश को इसी कोरोना आपदा के दौरान और भी ऐसे अनेक समाचार मिलेंगे जिससे पता चलेगा कि किन किन नेताओं के संरक्षण में आपदा को अवसर में बदलने' का इस तरह का घिनौना खेल खेला गया है।