युवा भारत बेरोजगारों का महादेश है
महात्मा गांधी ने भी आजादी की लड़ाई में युवाओं को महत्व देकर याद किया था और तब 'यंग इंडिया' नाम से एक अखबार भी निकाला था। युवाओं का 'भारत का भविष्य' कहकर यंत्र-तंत्र-सर्वत्र घोषणाएं करने की ये आदत, बीमारी और राजनीति तब से आज तक बदस्तूर जारी है क्योंकि यदि हमारा कोई सपना नहीं होगा तो फिर भविष्य कैसे बनेगा। अभी हाल में प्रधानमंत्री भी लालकिले से युवाओं का आवाह्न कर रहे थे तो राजस्थान में भी सरकार पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के हवाले से विज्ञापन देकर बता रही थी कि मैं युवा हूं और मेरा भी एक सपना है, क्योंकि भारत को मजबूत स्वतंत्र, आत्मनिर्भर और दुनिया के सभी देशों में से प्रथम रैंक में लाना और मानव जाति की सेवा करना है।' अब मेरे कुछ कहने से पहले आप ही कुछ सोचिए और बताइये कि आज भारत में युवाओं की स्थिति क्या है?हमें तो ऐसा लगता है कि-आज की सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक हालात में युवाओं को सरकार के भरोसे नहीं रहना चाहिए क्योंकि 1990 के बाद से वैश्विक-अर्थव्यवस्था के दौर में सभी सरकारें अपनी लोककल्याण से प्रेरित सभी योजनाओं को छोड़कर-बाजार और पूंजी व्यापार की शरण में जा रही हैं। विकास के नाम पर मंदी और घाटे का समय चल रहा है और आधार लेकर घी पीने की पुरानी चाणक्य परम्परा से मेरे भारत की महानता का जहाज डूब रहा है। राजनीति की प्राथमिकताएं बदलने के साथ ही-युवाओं के सपने राष्ट्रवाद के एजेन्डा में अपनी प्राथमिकता खो चुके हैं और बेरोजगार युवाओं का प्रत्येक सपना अराजकता, असंतोष और अपराध की तरफ बढ़ रहा है, क्योंकि सरकार ने घाटे और कर्ज की अर्थव्यवस्था के आगे घुटने टेक दिये हैं। इसलिए युवा सपनों को एक बार फिर से ये सोचना चाहिए कि वो आगे किस रास्ते पर जायें। हम वर्तमान के युवा विक्षोभ को ये कहकर अनदेखा नहीं कर सकते कि पूरी दुनिया में ही जब रोजगार घट रहे हैं तो भारत में फिर रोजगार कैसे बढ़ेंगे?हमें इतिहास का ये परिवर्तन भी समझना होगा कि अब औद्योगिकरण के विस्तार से और दैनिक जीवन में ज्ञान-विज्ञान के प्रसार से रोजागार, नौकरी, कामधंधा और मजदूरी भी सभी परिभाषाएं और सम्भावनाएं बदल गई हैं तब बेटी के लिए सरकारी नौकरी वाला दूल्हा ढूंढना, रेत में सुई तलाश करने जैसी तपस्या हो गया है। भारत में ग्रामीण क्षेत्रों रोजी रोटी का आधार अब महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) हो गई है जब कि सरकारी विभाग में लाखों-रिक्त पद भरना सरकार के लिए असंभव हो गया है।
पिछले 25 साल में ही सरकारी व्यवस्था इतनी बदलहाल हो गई है कि-खाली पदों को एक निश्चित मानदेय के साथ संविदा (ठेके) पर भरा जा रहा है। अब संविदा पर रोजगार की हालात ये है कि इसमें कुछ भी स्थाई नहीं है और पेन्शन, भत्ते, अवकाश आदि, का भी कोई प्रावधान नहीं है और इसमें चिकित्सा और शिक्षा
, यातायात भत्तों आदि का नाम लेना भी पाप हो गया है। यानि की बेरोजगारों की फौज में पूरे देश में एक सामाजिक असुरक्षा का वातावरण बना दिया है और युवा आक्रोश सड़कों पर आ रहा है। याद रहे कि भारत की अर्थव्यवस्था में उदारीकरण और निजीकरण का आज इतना फैलाव हो गया है कि सरकारी दफ्तरों के कामकाज ठेके पर निजी कम्पनियां चला रही है। बाजार की ताकत अब आम नागरिक के जीवन में पैसे की तरह, भगवान की तरह हो गई है। यही करण है कि पूंजी वाद व्यवस्था में सरकार साफ कह रही है कि यदि आप विकास और सुविधा चाहते हैं तो इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी। बिजली, पानी, सड़क, अस्पताल, स्कूल जैसी सभी सुविधाएं आज-निजी क्षेत्र में हैं और निजी क्षेत्र में नौकरियों के लिए आपकी कुशलता भी जरूरी है और सरकार की तुलना में तनखा भत्ते और सुरक्षा भी कम है। हम युवा सपनों और बेरोजगारी की बात करते हुए अब ये भी कहेंगे कि पढ़े-लिखे बेरोजगारों का ये दंगल आगे चलकर भारत के विकास और राजनीति को भी प्रभावित करेगा तो लोकतंत्र को एक हिंसक महाभारत में भी बदल सकता है। आज की आर्थिक नीतियों के कारण हमारी पुरानी आरक्षण की राजनीति अब संकट में संकट बढ़ा रही है क्योंकि निजी क्षेत्र जाति-धर्म के आरक्षण नहीं देता और आपकी गुणवत्ता चाहता है__ युवा सपनों की ये बेरोजगारी इतनी व्यापक है कि कोई सरकार-इसका नाम नहीं लेती और भ्रष्टाचार की तरह-बेरोजगारी को भी भगवान भरोसे कहकर हाथ जोड़ देती है। और तो ओर अब सारे बेरोजगार राजनीति में घुस रहे हैं क्योंकि राजनीति में पैसा लूटने और गरीब को चूसने की अपार ताकत है। ये भी एक कारण है कि गरीब ही आजादी के बाद हर चुनाव में लोकसभा से ग्राम सभा तक पूंजीपतियों और अपराधियों को अपनी सरकार चुन रहा है और सरकारी सपनों की दलाली कर रहा है। बेरोजगारों की पहली पसंद अब राजनीति ही है क्योंकि चुनाव और राजनीति अब इस देश का सबसे बड़ा उद्योग जगत है। महान भारतीय आत्माओं का आदर्श-अब बेरोजगारों का यथार्थ है इसलिए जागो और सपने देखना बंद करो क्योंकि जब एक चाय बेचने वाला भी भारत का प्रधानमंत्री बन सकता है तो फिर हम बेरोजगार भी क्या कुछ नहीं बन सकते?युवा सपनों का एक दूसरा इतिहास जनक्रांति का भी है और वयवस्था परिवर्तन का भी है, क्योंकि युवा राष्ट्र अपने जोश और होश में गांधी की चरखा क्रांति से कम्प्यूटर क्रांति तक आ सकता है तो युवा बेरोजगारी भविष्य के लिए सामाजिक आर्थिक गैर बराबरी को मिटाने का आंदोलन क्योंकि नहीं बन सकती?